माँ का आँचल है बड़ा ही प्यारा,
जिसने मुझ चंचल को सँवारा।
कभी मेरे आँसू पोंछे तो कभी पसीना,
तो कभी रहा मेरे साथ ,
बनकर मेरा बिछौना।
माँ के आँचल ने दी मुझे पग–पग पर छाया ,
मैं जब भी जीवन की धूप से डगमगाया।
उसमें हर सुख–दुःख बिना किसी शर्त के समाया,
मोह है अपार पर शून्य है मतलबी माया,
डर लगता है कहीं कुछ छूट न जाए ,
कहीं कुछ भूल न जाऊँ ,
सोचता हूँ ‘ माँ के आँचल ‘ के बारे में बस ऐसे ही कहता चला जाऊँ।