पिता का प्यार
माँ तो है ‘’ जीवनदायिनी ‘’
पर पिता की भी है ‘’एक अनसुनी कहानी’’
पिता, पापा, DAD, DADDY नाम तो दे दिए बड़े प्यारे,
पर क्यूं उसकी तपस्या को भूल जाते हैं हम सारे।
दिखता है वह नारियल समान सख्त सा,
लगता है डर उससे क्यूंकि रहता है वह खामोश सा।
वह भी तो था कल तक चंचल–मस्तमौला सा एक बालक,
जाने कब बन गया प्यार और त्याग की मूरत अचानक।
जीवन की ठोकरें खाकर, अपनी खुशियां भुलाकर,
मजबूत पेड़ की तरह सदैव खड़ा रहा, परिवार के सुखों को सींचता रहा,
अपना खून–पसीना बहाकर।
नहीं है वो कोई जादूगर पर अपने बलिदान से करता है हर दिन कोई नई जादूगरी,
वह कहानी का एक पात्र नहीं, मेरे पूरे जीवन की उसी ने है कहानी गढ़ी।
मेरे बचपन से लेकर जवानी तक के हर VILLAIN से लड़ा है जो,
मेरा असली ‘’SUPERHERO’’ मेरे ‘’PAPA’’ हैं वो।