Discipline और Punishment का संतुलन
Parenthood की दहलीज़ पर कदम रखते ही किसी भी couple की ज़िन्दगी में ज़िम्मेदारियों का पहाड़ सा खड़ा हो जाता है। माता -पिता को हर पल यही डर सताता रहता है कि अचानक यह पहाड़ ढह न जाए। इसी पहाड़ की एक महत्वपूर्ण शिला है ‘अनुशासन’. अनुशासन एक ऐसी कठिन डगर है जिस पर चलते चलते कई बार Parents को एहसास भी नहीं हो पाता कि कब उन्होंने बच्चे को Punishment देने का रास्ता अपना लिया है। ‘ Discipline और Punishment ‘ के बीच की महीन रेखा होती ही ऐसी है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो बच्चे के बचपन से जुड़े पिटाई और सज़ा के किस्से लगभग हर परिवार में सुनने को मिल ही जाते हैं। माँ – बाप के दृष्टिकोण से देखें तो निश्चित रूप से कोई भी माता – पिता अपने बच्चे को बिना कारण नहीं मारते। मुमकिन है कि आपका मूड कुछ ठीक नहीं है और तभी बच्चे ने कोई गलती कर दी। आप संयम नहीं रख पाए और बच्चे की पिटाई कर दी। यह भी संभव है की आप बच्चे को किसी बात पर कई बार समझा चुके हैं पर बच्चा शरारत से बाज़ ही नहीं आ रहा तो उसकी पिटाई हो गयी।
पर क्या पिटाई के बाद आपका बच्चा अनुशासित बन गया और उसने अपनी सारी गलतियाँ एक ही बार में सुधार लीं ? इसका स्पष्ट जवाब है ‘ नहीं ‘.
पिटाई किसी समस्या का समाधान कतई नहीं हो सकता। सवाल तो ‘ जस का तस ‘ है की फिर माँ – बाप बच्चे को अनुशासित कैसे करें ? हड़बड़ायें नहीं ! सब कुछ आपके बस में है बशर्ते सबसे पहले आप स्वयं को अनुशासित कर लें। हर बच्चे के व्यक्तित्व में कहीं न कहीं अपने पेरेंट्स की झलक दिखती है जो सामान्य सी बात है।‘ माँ का आँचल‘ के आज के लेख में हम बच्चे को अनुशासित रखने के व्यावहारिक और कारगर सुझावों को highlight करेंगे।
- पहला कदम! माता– पिता स्वयं अनुशासित बनें
माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन सिखाने में जी-जान लगा देते हैं. नए -पुराने , सुने-सुनाए तरीकों से बच्चों पर नज़र रखते हैं. ऐसा करो वैसा मत करो। आपने चील सी तेज़ नज़र रख भी ली पर सब बेकार है यदि आप, हाँ आप! खुद अनुशासित नहीं हैं तो। उदाहरण के लिए आप बच्चे को कम t.v देखने का ज्ञान बांटते हैं और समय मिलते ही खुद घंटों तक t.v से चिपके रहते हैं। आप बच्चे को किताबें पढ़ने के फायदे (benefit ) समझाते हैं और आपके हाथ में हर समय मोबाइल रहता है। आप बच्चे को तो’ healthy food ‘ के गुण बताते हैं और खुद ‘अगड़म– बगड़म‘ (fast food, snacks ) खाने के शौक़ीन हैं। यह तो कुछ चुनिंदा उदाहरण थे। सोचने बैठे तो पूरी की पूरी लिस्ट तैयार हो सकती है। अब बताइये बच्चे से पहले क्या आपको अनुशासन का पाठ पढ़ने की ज़रूरत नहीं है।
- सहूलियत के हिसाब से अपने ही बनाये नियम न बदलें
अक्सर parents अपनी कही बात को बच्चों के सामने ‘ पत्थर की लकीर‘ के रूप में पेश करते हैं। मसलन आपने किसी विशेष काम के लिए बच्चे को जिस तरह का निर्देश दिया है वह उसी को फॉलो करे। बच्चा कभी आपके प्रति सम्मान में तो कभी आपके डर से, आपके बताये नियमों पर चलने लगता है। अब जब बच्चे ने आपके बताये पैटर्न को रूल मान कर मानना शुरू कर दिया तो अचानक किसी दिन आपने अपनी सहूलियत के लिए अपने ही बनाये नियमों में कुछ फेर बदल कर दिया। बस यहीं आप गलती कर बैठे।Parent होने के नाते आपको तो यह सामान्य लगेगा पर बच्चे की लाइफ में बिना बताये उथल- पुथल मच जाती है। बच्चा कंफ्यूज हो जाता है कि वह तो आपके बताये नियमों को फॉलो कर रहा था , तो उसकी क्या गलती है। उसका confusion गुस्से में बदल सकता है। माता – पिता को समझने की ज़रूरत है कि किसी भी कारण से यदि आपने routine में कुछ बदलाव किया है तो बच्चे को प्यार से कारण समझा दें वरना आपकी बनायीं हुई अनुशासन की सीढ़ी खुद ब खुद टूट कर धराशाही हो जाएगी।
- समझाने के लिए सही समय का चुनाव करें
अमूमन ऐसा देखा जाता है की बच्चे ने कोई गलती कर दी और माँ- बाप जगह और समय देखे बिना बच्चे पर बरस पड़ते हैं। संभव है आपने बच्चे की कोई शरारत पकड़ ली और आपने उसे उसके दोस्तों के बीच में ही बुरी तरह डाँट लगा दी। बच्चे हों या बड़े चार लोगों के बीच में डाँट पड़ना बड़ा ही असहज होता है। उस समय बच्चे को आपकी डाँट भी मार से कुछ कम नहीं लगेगी। माता – पिता को चाहिए की वह परिस्तिथि का आकलन करते हुए बच्चे को अलग ले जाकर उसकी गलती और गलती के परिणाम भी समझाएं। कई बार बच्चे मस्ती – मज़ाक में कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसके घातक परिणाम से वह खुद भी अनजान होते हैं। माता- पिता समय रहते बच्चे को सही – गलत का फर्क समझा देंगे तो निश्चित रूप से बच्चा अनुशासन की लकीर नहीं लांघेगा।
- प्यार और भरोसे का साथ कभी ना छोड़ें
बच्चों के साथ थोड़ी – बहुत सख्ती करने में कोई बुराई नहीं है पर ध्यान रहे बचपन बड़ा ही कोमल , मासूम होता है। बच्चे के मन में कभी भी यह भावना न पनपने पाए कि उससे गलती हुई नहीं कि आप उसकी class लेने वाले हैं। प्यार तो हर माँ – बाप अपने बच्चे से तहे दिल से करते हैं पर भरोसा कितने करते हैं। अपने बच्चे को डर का नहीं प्यार और भरोसे का माहौल दीजिये। हर समय केवल Mummy- Papa बन कर न रहे। ज़रूरत पड़ने पर अपने बच्चे के दोस्त बनें , उसके मार्गदर्शक बनें। बच्चे को यह विश्वास दिलाएं की आप न केवल उसके सुख में बल्कि दुःख में भी हर कदम पर उसके साथ खड़े हैं और हमेशा खड़े रहेंगे। बच्चा गलती करे तो उसे गलती से सीख लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। कभी भी बच्चे को भावनात्मक रूप से अकेला न होने दें।
- बच्चे और अपने बीच Communication Gap न होने दें
Parents के ऊपर घर-बाहर की ज़िम्मेदारियों का इतना बोझ होता है कि कई बार वह तसल्ली से अपने बच्चे के साथ बैठ कर बात करने का समय निकलना ही भूल जाते हैं या चाह कर भी नहीं निकाल पाते। वह देखते हैं की बच्चा अपनी लाइफ में busy है तो खुश ही होगा। ऐसे निराधार अनुमान लगा कर आप राय न बनायें। कई संपन्न माता – पिता अपने बच्चों को सभी तरह की भौतिक सुख-सुविधायें देकर यह समझने की गलती कर बैठते हैं कि वह अपनी ज़िम्मेदारियाँ उचित रूप से निभा रहे हैं। ऐसी सोच तो और भी घातक हो सकती है क्यूंकि कोई भी चीज़ कुछ समय के लिए आपके बच्चे को ख़ुशी दे सकती है पर उसके सुख – दुःख नहीं बाँट सकती। बच्चे को कोई उलझन या परेशानी है तो वह अपने स्मार्ट फ़ोन या t.v से share नहीं कर सकता। अपना मन हल्का करने के लिए अपने सबसे पहले और करीबी दोस्त के रूप में बच्चा mummy – papa के साथ की अपेक्षा करता है और यदि उस समय आपके पास उसके लिए समय नहीं हुआ तो उसका दुःख बाहर नहीं निकल पायेगा और कई बार गुस्से में भी बदल सकता है। बच्चा धीरे-धीरे अकेलेपन में रहकर अनुशासन की राह से भटक जायेगा। Parents को समझना चाहिए कि parenting एक lifetime ज़िम्मेदारी है। सुख में , दुःख में जितना हो सके अपने बच्चे के साथ समय बिताएं। हँसी – मज़ाक में बच्चे अपनी life से जुड़ी कई बातें share कर जाते हैं। अपने और बच्चे के बीच बातचीत का दायरा बढ़ाने की पूरी कोशिश करें। हाँ मगर उनके PERSONAL SPACE की गुंजाईश हमेशा रहने दें।
सौ बात की एक बात
अनुशासन या ‘ DISCIPLINE’ किसी भी व्यक्ति की ‘ PERSONALITY ‘ की आधारशिला होती है। यह अति आवश्यक है की बच्चे को छोटी उम्र से ही अनुशासित होने के गुणों से परिचित कराया जाये ताकि बच्चा ‘आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी ‘ बन सके। रही बात डाँट – डपट , मार – पीट या सजा देने की तो सौ बात की एक बात है कि सजा से बच्चे का भविष्य कभी भी सँवरेगा नहीं उल्टा आपके और उसके बीच में एक अनदेखा फासला बनता जायेगा। अनुशासन की डगर शुरुवात में कठिन ज़रूर लगती है पर एक बार आपने सही पैटर्न को पकड़ लिया तो आपकी और बच्चे दोनों की life सरल बन जाएगी। माता- पिता को ‘discipline और punishment ‘ का संतुलन बना कर रखना होगा। आपको बच्चे को अनुशासन की बेड़ियों में जकड़ना बिलकुल नहीं है। ज़रूरत पड़ने पर थोड़ी ढील भी दीजिये जिस प्रकार ‘ पतंग को खुले आसमान में ऊँचा उड़ाने के लिए मांजे को ढील तो देनी ही पड़ती है वरना पतंग का कटना निश्चित है। समझ लीजिये आपका बच्चा पतंग है और आप उसका मांजा। मज़बूत मांजा मुश्किलों का सामना करते हुए खुले आसमान में पतंग को ऊँची उड़ान भरने के काबिल बना ही देता है।
हम आशा करते हैं की ‘ माँ का आँचल ‘ का आज का लेख बच्चों के प्रति अनुशासन का सही अर्थ समझा सका होगा। पाठकों से निवेदन है अपना साथ और विश्वाश हमारे साथ बनाये रखिये जिस से ‘ हम और आप ‘ Parenting के सफर को सरल और सुगम बनाते चलें.
Happy Parenting!