Digital Duniya में बच्चों की सुरक्षा
Advance technology की दुनिया में दिन–प्रतिदिन नए कीर्तिमान बनते जा रहे हैं। एक ज़माना था जब हम केवल कागज़ के पन्नों वाली बुक की बात करते थे पर समय का पहिया घूमता गया और हम Digital दुनिया में पहुँच गए और अब हम Digital books की बात करते हैं। Digitization के विशाल सागर में हर कोई गोता लगाना चाहता है पर ज़रा संभल के क्यूंकि यहाँ जिसे तैरना ना आता हो वह तेज़ लहरों के साथ डूब भी सकता है। मतलब जिसने alert रहकर Technology का इस्तेमाल नहीं किया उसके लिए Digital दुनिया घातक साबित हो सकती है। Digital World में हमारे पास वैराइटी –वैराइटी के उपकरण मौजूद हैं। Phone ,T.V ,Computer , Tab, Home Appliances आजकल सब कुछ Smart हो चले है। Famous FORBES magazine की ताज़ा Internet Usage Statistics Report 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक 5.35 Billion Internet users worldwide हैं, जो की 2029 में बढ़कर 7.9 Billion users हो सकते हैं। इनमें 75% users 15-24 age group के हैं।
‘ बदलाव प्रकृति का नियम है ‘। इस बदलाव भरे मौहाल में हर Parent खुद को और अपने बच्चों को Smart बनाना चाहता है। तो क्या Parents और बच्चों में इतनी जागरूकता है की वह सतर्क रहकर इन gadgets का इस्तेमाल करते हुए खुद को Cyber Crime की अँधेरी दुनिया का शिकार होने से खुद को बचा कर रख सकें। चाहें या न चाहें पर बच्चों को basic gadgets देना ज़रूरत बन चुका है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है अगर अभिभावकों ने अपने बच्चे के उम्र के हिसाब से एक दायरा तय कर लिया हो तो। ज़िम्मेदार अभिभावक की भूमिका निभाते हुए आपको अपने बच्चे को Digital Screen Time के लाभ –हानि (pros n cons) समझाने होंगे जिससे यह ज़रूरत उसकी लत (addiction) न बन जाए।
‘ माँ के आँचल ‘ की आज की चर्चा का विषय Digital Duniya में बच्चों की सुरक्षा का ही है। लाभ हो या हानि हम पूरी पारदर्शिता (transparency) के साथ दोनों पहलुओं को समझेंगे।
Digital Gadgets का बच्चों के जीवन में लाभ
देश में Advance technology 5-G ने दस्तक दे दी है। इसका सीधा फायदा Educational Sector को भी मिलने लगा है। Class छोटी हो या फिर बड़ी , बच्चे और teachers दोनों ही नई जानकारी हासिल करने के लिए Online Learning Platforms का भरपूर इस्तेमाल करते हैं। Covid के बाद से तो internet usage अपनी चरम सीमा पर पहूँच गया है। Chat GPT और AI (Artificial Intelligence) ने तो क्रांतिकारी बदलाव ला दिए हैं जो की चर्चा का ज्वलंत मुद्दा भी बना हुआ है। अब देखना – समझना यह है की Internet के सागर की बूंदों का बच्चों के जीवन में फायदा–नुकसान किस रूप में है। आइए समझते हैं –
1. बच्चे अधिक Self- dependent होते हैं
जब भी बच्चा internet पर खुद से search करता है तो उसकी माता – पिता और teachers पर dependency कम होती जाती होती है। वह जब चाहे अपनी आवश्यकता अनुसार नए – नए विषयों पर Information Collect करने के काबिल बन जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि teachers और parents की अहमियत कम हो गयी। यह कह सकते हैं की उन्हें एक Supporting Hand मिल जाता है।
2. T.V पर Science, Technology, Animal, Comedy channels भी मददगार
Google और You tube के अलावा T.V के ही ढेरों Informative channels मौजूद हैं। सही मार्गदर्शन देकर माता–पिता बच्चे को ऐसे channels देखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं जिससे बच्चा मनोरंजक तरीके से हॅसते–खेलते बहुत कुछ सीख सकता है। उदाहरण के तौर पर Craft, Sports, Syllabus, Music etc.
3. OTT (Over the Top) तेज़ी से बढ़ता platform
साल दर साल विश्व स्तर पर OTT Platforms के अनूठे विकल्प बढ़ते जा रहे हैं। ना सिर्फ बड़ों के लिए बल्कि बच्चों के लिए भी देश –विदेश की विभिन्न भाषाओं के shows, फिल्में हमें घर बैठे देखने को मिल जाते हैं। बच्चे किसी भी प्रतिष्ठित OTT Platform पर अपनी आयु और पसंद के अनुसार Subtitles के ज़रिये नई भाषाएँ भी सीख सकते हैं। विभिन्न क्षेत्रों के जाने – माने Experts के interviews , biographies से जीवन की सीख ले सकते हैं।
4. Social Media के माध्यम से बच्चे Worldwide दोस्तों, Teachers , Experts से सीधे जुड़ सकते हैं
Facebook, Whatsapp , Instagram , X (formerly Twitter), जैसे app नई पीढ़ी के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। किसी देश के एक कोने में बैठकर न केवल उस देश बल्कि विदेश में भी कहीं भी,कभी भी, किसी भी समय लोग आपस में एक–दूसरे को देख सुन सकते हैं।अपने विचार साझा कर सकते हैं। सलाह–मशवरा कर सकते हैं। दिशा सही हो तो social media असीमित दायरे में बच्चों का भविष्य सँवार सकते हैं। इसके विपरीत यदि कोई बच्चा गलत राह पकड़ ले तो आजकल की भाषा में Troller बन कर किसी को मानसिक पीड़ा पहुँचा सकता है जो की सरासर गलत है।
5. मुश्किल की घड़ी में मददगार (Savior)
बहुत से ऐसे प्रामाणिक अवसर देखने – सुनने को मिलते हैं जब बच्चा पढ़ाई के बीच में किसी topic पर बुरी तरह अटक गया हो। संकट की उस घड़ी में वह Internet की तुरंत help ले सकता है बजाए school पहूँचने और teacher से मिलने का इंतज़ार करने के। ‘ खुदा ना खास्ता ‘ संकट की किसी घडी में Police GPS track करके आपके बच्चे तक पहूँच सकती है। पर यह तभी संभव है जब आपके बच्चे को Smart Phone use करना आता हो।
मोटे–मोटे तौर पर हमने Digital World की बड़ी सारी खूबियों को देखा–समझा और यकीनन खुश भी हुए होंगे पर कहते हैं ना कि ‘ चाँद में भी दाग होता है ‘ फिर हम तो यहाँ Digital Duniya की बात कर कर रहे हैं। बात को अधिक ना घुमाते हुए अब हम Digitization के हानि पक्ष को भी समझेंगे।
Digital Gadgets का बच्चों के जीवन में हानि
सावन के अंधे की तरह हमें सब कुछ हरा –हरा देखने की ज़रूरत बिलकुल भी नहीं है। आइए Digitization के कुछ negative पहलुओं पर भी नज़र डालते हैं।
1. असीमित Information होने पर बच्चे का भटक जाना
बच्चा Internet पर जब भी कुछ search करता है तो वह हर एक click के साथ जानकारी पाने का दायरा बढ़ाते जाता है। कभी–कभी वह अपने subject से आगे बढ़ते हुए धीरे–धीरे किसी और ही zone में search करने लग जाता और अक्सर उसे इस बात का एहसास भी नहीं होता। यह भटकाव की पहली सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर उतरना काफी मुश्किल होता है।
2. समय की बर्बादी
Internet, Social Media, Phone , T.V ऐसे माध्यम हैं जिनका यदि बिना सोचे–समझे प्रयोग किया जाए तो यह जानकारी हासिल करने के बजाए मनोरंजन का साधन अधिक बनते जाते हैं। परिणामस्वरूप समय की बर्बादी होना निश्चित है। अचम्भे की बात यह है कि User को पता भी नहीं चलता और उसके घण्टों बीत जाते हैं। Parents का guidance ना मिले तो बच्चे समझ ही नहीं पायेंगे कि उन्होंने कितना time waste कर दिया है।
3. सच्चे और अच्छे दोस्तों की कमी
लगभग सभी बच्चे कोई ना कोई Social Media Platform use करते हैं जिस पर उनके ढेरों अनदेखे दोस्त बन जाते हैं। जो दोस्त आपके आमने –सामने मौजूद न हो उनकी दोस्ती कितनी सच्ची होगी इस बात की क्या गारण्टी है। Influencers की lavish पर, कई बार fake lifestyle देख कर बच्चे ज्यादा से ज्यादा Online Friends , Likes, Followers भंवर में ऐसा फंसते जाते हैं कि अनजाने में वह मानसिक पीड़ा से ग्रसित हो जाते हैं।
4. Physical Activities से दूर होते जाना
जो बच्चा बिना किसी Time Management के T.V, Mobile , Internet पर कीमती time खर्च करेगा तो स्वाभाविक तौर पर वह बाहर खेलने – कूदने के लिए कम समय के लिए जाएगा। धीरे –धीरे उसका शारीरिक और मानसिक विकास घर के किसी कमरे में सिमट कर रह जायेगा जो लम्बे समय में उसके व्यक्तित्व विकास में बाधा बनेगा। बच्चे जब घर के बाहर निकलते हैं तो अपने हमउम्र , छोटे , बड़ों से बातचीत , खेल –कूद के ज़रिये बहुत सारी बातें सीखते है। लोगों से मिलना –जुलना Confidence building में मदद करता है।
सौ बात की एक बात
Digitization निश्चित रूप से ऐसा क्रांतिकारी बदलाव है जिसने पूरी दुनिया का सोचने –समझने का नजरिया ही बदल दिया है। हमने आज के लेख में बीते वर्षों Digital Duniya में आए लगभग उन सभी बदलावों को उजागर करने की पूरी कोशिश की है। कुछ मन लुभावन हैं तो कुछ मन तो डराते भी हैं तो फिर बात यहाँ पर अटकती है की यदि Digitization का लाभ –हानि दोनों का पलड़ा भारी है तो बच्चों के लिए सही फैसला कैसे लिया जाए। कोई भी माता – पिता अपने बच्चे को सबसे बेहतर तरीके से समझते हैं क्यूंकि वह उन्ही का एक अंश है। अब आपको ही यह तय करना होगा की आपका अंश किस प्रकार फले –फूलेगा। जिस प्रकार अभिभावक अपने बच्चे के खान–पान, रहन –सहन पर सोच –विचार के फैसले लेते हैं ठीक उसी प्रकार से उन्हें अपने बच्चे के Digital time को manage करना भी सीखना होगा। बच्चे के सोने –उठने , School, पढ़ाई –लिखाई ,खेलने –कूदने जैसी Activities पर गौर करते हुए उसके लिए एक Daily Screen Time , set कीजिये। अति किसी भी चीज़ की बुरी ही होती है यह हम सब जानते हैं। पर ऐसा ना हो की जब पकड़ हाथ से निकल जाये तो आप डाँट –डपट के बच्चे के gadgets use करने पर पूरी तरह से पाबन्दी ही लगा दें। Digitization के बदलते दौर में आपको खुद को और अपने बच्चे को Up to Date रहकर Smart बनना होगा ना की ‘ कुँए का मेंढक ‘। सौ बात कि एक बात यही है की सतर्क और सजग रहकर अपने बच्चे के overall development में उसके मार्गदर्शक बनिए रूकावट नहीं। Technology का ज़माना है उसे ख़ुशी –ख़ुशी अपनाइये ताकि आप अपने बच्चे को Digital Duniya के अंधकारमय पक्ष के चंगुल में फंसने से बचा कर रख सकें।
‘माँ के आँचल ‘ के इस लेख का अंत हम Mahatma Gandhi जी के quote से करेंगे –
‘ Every Home is a University and Parents are the Teachers ‘
Mahatma Gandhi
Happy Parenting !